Monday, September 29, 2008

दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !


समझ प्यार की नही जिन्हें है
समझ नही मानवता की
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त नही, हो पाती हैं !
दुनिया चाहे कुछ भी सोचे कभी न हाथ पसारूंगा !

विस्तृत ह्रदय मिला इश्वर से
सारी दुनिया ही घर लगती
प्यार नेह करुना और ममता
मुझको दिए विधाता ने
यह विशाल धनराशि प्राण अब क्या मैं तुमसे मांगूंगा !

जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में, रहने आये
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं क्या निर्धन से मांगूंगा !

प्रिये दान से बढ कर कोई
धर्म नही है, दुनिया में !
खोल ह्रदय कर प्राण निछावर
बड़ा प्यार है, दुनिया में
मेरा जीवन बना दान को क्या याचक से मांगूंगा !

गर्व सदा ही खंडित करता
रहा कल्पनाशक्ति कवि की
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे गर्वीलों का,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !

Tuesday, September 23, 2008

हम अपनी शिक्षा भूल चले !

बहुत दिन से इच्छा थी कि मैं अपने संक्षिप्त ब्लाग अनुभवों के बारे में लिखूं ! सो लिख डाला ! मेरा एक ही अनुरोध है कि "लाइट ले यार" !

कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए !
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक, भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,जो दम सेवा का भरते हैं
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !

कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !