Tuesday, September 23, 2008

हम अपनी शिक्षा भूल चले !

बहुत दिन से इच्छा थी कि मैं अपने संक्षिप्त ब्लाग अनुभवों के बारे में लिखूं ! सो लिख डाला ! मेरा एक ही अनुरोध है कि "लाइट ले यार" !

कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए !
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक, भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,जो दम सेवा का भरते हैं
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !

कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !

15 comments:

  1. चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !

    --बाकी तो समझे...लाइट भी लिया मगर हुआ क्या है भई!!

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  2. वही याद रख लेते सब तो फ़िर ……… । अच्छा लिखा आपने

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  3. मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
    अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

    आपकी भावना हमको समझ आ रही हैं ! इस सशक्त रचना
    के लिए धन्यवाद !

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  4. सुन्दर!
    'तोहमतें चंद अपने ज़िम्मे धर चले
    किस लिये आए थे हम, क्या कर चले।'

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  5. मन के तार बज उठे आप की इस कविता को पढ कर एक एक शव्द जेसे सच मे डुबा हुआ....
    धन्यवाद

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  6. कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
    के सम्मोहन में ही डूब गए
    कीकर, बबूल उन्मूलन की
    सौगंध उठा कर आया था ,
    मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
    ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !
    "wonderful creation of yours, appreciable"
    Regards

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  7. Neither I have words nor I have the Potential to give a comment on your creation.
    Excellant depict.....
    Awaiting for more post.I am an admirer of your Mere Geet too!

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  8. आपके लेखन की एक विशेषता है आम जीवन के बोलचाल के शब्द एवं सहज भाषा. मजे की बात यह है कि ये दोनों सहज घटक मिल कर आपके व्यंग को बेहद शक्तिशाली बना देते हैं.

    अपनी इस विशेषता को कायम रखो, पाठको की संख्या बढती जायगी!!

    -- शास्त्री

    -- हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत में विकास तभी आयगा जब हम एक परिवार के रूप में कार्य करें. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  9. यह हिम्मत उन लोगों की है,जो दम सेवा का भरते हैं
    कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !
    satish jee muskan ke aage sabhee natmastak hote haiN. kamayani me bhi yahi likha hai-
    इन्द्र का आयुध
    पुरुष जो झेल सकता
    सिंह से बाहें मिलाकर खेल सकता
    बिद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के वाण से
    जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से.

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  10. राष्ट्रप्रेमी जी !
    आपका यह कमेन्ट, बेहद अच्छे कमेंट्स की श्रेणी में आता है इसके कारण इस साधारण गीत की शोभा दूनी हो गयी है ! आपका धन्यवाद !

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. पुरूष कोई ट्राफी नहीं हैं
    जीतना चाहे जिसे हर नारी
    और
    क्यों कभी कोई पुरूष
    नहीं बंधता ज्ञान के चक्षु से
    क्यूँ केवल रूपसी नारी की मुस्कान
    ही भाती हैं
    वोह शिक्षा ही क्या जिसको
    आप भूल गए
    शिक्षा याद करने के लिये नहीं
    कार्यान्वित करने के लिये
    पढी और सीखी जाती हैं
    जो शिक्षा को भूल जाते हैं
    वो केवल पढ़ते और पढाते हैं
    लाईट मत ले यार
    अंधेरे मे रौशनी का
    दिया जला और दिग्भ्रमित होने से बच जा

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  13. रचना जी !
    पहली बार आपने प्रतिक्रिया " लाइट ले यार " वाले मूड में दी है ! आपका आभारी हूँ ! राष्ट्रप्रेमी विद्वान् एवं आचार्य हैं उन्होंने नारी की सुन्दरता की तारीफ में कामायनी का उदाहरण दिया सो तारीफ़ करना लाज़मी था !
    फिर भी आपकी शिक्षा सादर ग्रहण करता हूँ ! भविष्य में आपको याद करते समय, ख़ास तौर पर इसे याद रखने का प्रयत्न करूंगा ! :-)
    एक अनुरोध और कृपया इस ब्लाग पर ज्यादा संजीदगी नही ! लाइट ले यार !

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  14. सतीश जी धन्यवाद किन्तु रचना जी के कमेन्ट को भी लाइट लेने में क्या जाता है. मैनें कमेंन्ट में कामायनी का उल्लेख किया है. मुझे लगता है वह भी गलती से हुआ है वास्तव में ये पंक्तियां उर्वशी की है. महिला-पुरुष सम्बन्धों पर जो गम्भीर दर्शन कामायनी व उर्वशी में मिलता है, समानता का तराजू लेकर विभाजन की बात करने वाले क्या समझेंगे? नर-नारी को मिलाने का काम महत्वपूर्ण है, आप इसी में लगे रहियेगा और टिप्पणी को लाइट ले यार!

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  15. darasal ham jin cheezon ko halke se lete hain, gambheer aur mulyawaan wahi hoti hai.

    sateesh ji ne adhikaanshta is blog par mahatvpurn vishayon ko sparsh kiya hai.

    ghoshit halki cheez nisandeh wazan rakhti hai.

    mujhe lagta hai ki shayad parsayi ji bhi kabhi yahi kahte honge.lekin aaj unka likha dastavezi ahmiyat ka haamil hai.

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