Monday, September 29, 2008

दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !


समझ प्यार की नही जिन्हें है
समझ नही मानवता की
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त नही, हो पाती हैं !
दुनिया चाहे कुछ भी सोचे कभी न हाथ पसारूंगा !

विस्तृत ह्रदय मिला इश्वर से
सारी दुनिया ही घर लगती
प्यार नेह करुना और ममता
मुझको दिए विधाता ने
यह विशाल धनराशि प्राण अब क्या मैं तुमसे मांगूंगा !

जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में, रहने आये
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं क्या निर्धन से मांगूंगा !

प्रिये दान से बढ कर कोई
धर्म नही है, दुनिया में !
खोल ह्रदय कर प्राण निछावर
बड़ा प्यार है, दुनिया में
मेरा जीवन बना दान को क्या याचक से मांगूंगा !

गर्व सदा ही खंडित करता
रहा कल्पनाशक्ति कवि की
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे गर्वीलों का,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !

13 comments:

  1. प्रिये दान से बढ कर कोई
    धर्म नही है, दुनिया में !
    खोल ह्रदय कर प्राण निछावर
    बड़ा प्यार है, दुनिया में
    मेरा जीवन बना दान को क्या याचक से मांगूंगा !
    'which expressions could be more beautiful than the above said lines , so touching and inspiring"

    Regards

    ReplyDelete
  2. बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।


    गर्व सदा ही खंडित करतारहा
    कल्पनाशक्ति कवि की
    जंजीरों से ह्रदय और मन
    बंधा रहे गर्वीलों का,
    मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !

    ReplyDelete
  3. जिसको कहीं न आश्रय मिलता
    मेरे दिल में, रहने आये
    हर निर्बल की रक्षा करने
    का वर मिला विधाता से
    दुनिया भर में प्यार लुटाऊं क्या निर्धन से मांगूंगा !

    क्या लाजवाब रचना है ? बहुत बहुत शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  4. मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !
    बहुत मस्त रचना ! यहाँ फक्कड़ शब्द ऐसा लग रहा है जैसे किसी सूफी संत की
    वाणी पढ़ रहे हों ! बहुत धन्यवाद आपको !

    ReplyDelete
  5. वाह! बहुत सुंदर लिखा है. बधाई.

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर। नीरज की याद ताज़ा कर दी आपने:-
    'मेरा श्याम सकारे मेरी हुण्डी आधी रात को,
    मुझे ज़रूरत क्या जो जाऊं किसी राजदरबार में'
    हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  7. प्रेम में दान और धर्म का क्या काम?

    ReplyDelete
  8. एक दार्शनिक चिंतन

    ReplyDelete
  9. सतीश जी बहुत ही उम्दा, क्या बात हे... दान से बढ कर कोई धर्म नही हे दुनिया मे...
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. गर्व सदा ही खंडित करता
    रहा कल्पनाशक्ति कवि की
    जंजीरों से ह्रदय और मन
    बंधा रहे गर्वीलों का,
    मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !


    ---बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

    ReplyDelete
  11. विस्तृत ह्रदय मिला इश्वर से
    सारी दुनिया ही घर लगती
    प्यार नेह करुना और ममता
    मुझको दिए विधाता ने
    यह विशाल धनराशि प्राण अब क्या मैं तुमसे मांगूंगा !

    जिसको कहीं न आश्रय मिलता
    मेरे दिल में, रहने आये
    हर निर्बल की रक्षा करने
    का वर मिला विधाता से
    दुनिया भर में प्यार लुटाऊं क्या निर्धन से मांगूंगा

    बहुत खूबसूरत, काश, काश सतीश जी ऐसा ही मन सब का होता...लेकिन पता नही क्यों, मन बनते हुए शायद अल्लाह ताला को कोई कमी पड़ गई थी इसीलिए कुछ कीमती अच्छे बनाए, लेकिन कम, बुरे बनाए ज़्यादा..शायद सस्ते पड़े होंगे....
    क्या बात है आपकी....जिसको कहीं न आश्रय मिलता
    मेरे दिल में, रहने आये....कितना प्यारा ख्याल है...

    ReplyDelete
  12. गर्व सदा ही खंडित करता
    रहा कल्पनाशक्ति कवि की
    जंजीरों से ह्रदय और मन
    बंधा रहे गर्वीलों का,
    मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !
    सतीश जी गर्वीलों के पास हे ही क्या? जो हम मागेगें. दिल व भावनाओं से निर्धन व्यक्ति जो खुद ही छीनने का आदी हो और अतृप्त हो किसी को क्या देगा, फ़िर आपके पास प्रेम है तो किसी अन्य की आवश्यकता ही कहां है.

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !