Wednesday, October 1, 2008

हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

जब से व्याही हूँ साथ तेरे
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें
बुड्ढे बुढ़िया के पैर छुएं,
फूटी किस्मत, अरमान लुटे, अब बात तुम्हारी क्यों माने ?


ना नौकर हैं, न चाकर हैं
न ड्राईवर है, न वाचमैन,
घर बैठे कन्या दान मिला
ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें


ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?


पत्नी सावित्री सी चहिये ?
पतिपरमेश्वर का ध्यान रखे
गंगा स्नान के मौके पर
जी करता धक्का देने को !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?


हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम प्रेतविनाशक तुम कायर
हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
जब तुम दफ्तर भग जाते हो
हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

21 comments:

  1. भाई बात भी सही है और कविता भी मजेदार कही है।

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  2. यह काफी स्त्रियों की व्यथा है जिसे आपने बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है. पुरुषों के लिये आत्मान्वेषण का रास्ता दिखा दिया आप ने.

    -- शास्त्री

    -- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  3. भाई मे तो ड्राईवर भी हूं, खरीदारी करवाने वाला *मुंडू* भी हु, ओर मेरी बीबी घर के सारे काम भी खुशी खुशी करती हे,लेकिन हमारे मन मे कभी भी ऎसी बातें नही आई.
    कविता तो अच्छी लिखी हे,लेकिन यह व्यथा कोन सी नारियो की हे????क्यो की मेने तो सभी को मिलजुल कर ही घर बसाते देखा हे, ओर अगर किसी भी परिवार मे दोनो मे से एक भी नालायक हो उस घर का तो हमारे देश जेसा ही हाल होगा.
    धन्यवाद

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  4. हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
    हम प्रेतविनाशक तुम कायर
    हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
    जब तुम दफ्तर भग जाते हो
    हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

    बहुत जानदार रचना ! सही कहा आपने !

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  5. dhnyabad sir, bahot accha hai,

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  6. हा हा!! बहुत मजेदार!!

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  7. बहुत बढिया,मज़ा आ गया।

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  8. हास्य का पुट देते हुए आपने जो व्यंग किया है बहुत ही प्रभावी बन पड़ा है। और आपकी शैली तो हमेशा की तरह अनूठी है ही।
    बधाई

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  9. वाह बंधुवर वाह..
    सुघड़ हास्य के गीत आजकल कौन लिखता है..?
    आपको पढ़ कर तसल्ली हुई..
    साधुवाद...

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  10. प्रिय सक्सेना जी =आपकी कुछ साहित्यिक रचनाएँ पढी थी एक दो पर कमेन्ट भी दिए =आपका हंसमुख चेहरा देख कर मुझे शंका तो हो रही थी कि यह गंभीर लेखक किसी एंगिल से चुटीली रचनाओं का रचियता जरूर होगा = आज मेरा अंदाज़ ठीक निकला /भाई कोई इसे नारी की व्यथा कह सकता है मगर मुझे तो , पति पत्नी की छेड़छाड़ ,शिष्ट हास्य ,व्यंग्य ,मजाक ,चुटीलापन सब कुछ नजर आगया /

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  11. आपकी कविता इतनी पसंद आयी की इसका लिंक मेरे ब्लॉग की पसंदीदा रचनाओं में दे रहा हूँ ! और इसकी कुछ लाइने भी मेरे पसंदीदा कवियों की लिस्ट में लगा रहा हूँ ! आशा है आप परमिशन देंगे !

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  12. आपकी कविता इतनी पसंद आयी की इसका लिंक मेरे ब्लॉग की पसंदीदा रचनाओं में दे रहा हूँ ! और इसकी कुछ लाइने
    भी मेरे पसंदीदा कवियों की लिस्ट में लगा रहा हूँ ! आपसे बिना परमिशन लिए मैंने ऐसा कर दिया है आशा है आप
    परमिशन देने की कृपा करेंगे !

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  13. लो जी एक हम ही रह गए थे, जो इतना अच्छी कविता नहीं पढ़ पाये. आज पढ़ ली, कसम से मज़ा आ गया.

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  14. vaah maza aa gya. lekin filhaal aur bhavishya main hamaari aisee koi vyatha nahi hai.

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  15. सतीश जी
    बात तुम्हारी क्यों मानें वाली महिलाओं को भारतीय महिलायें ही अस्वीकार कर देगीं. यही नही बात न मानने वाली महिलायें और पुरुष अपने एकांकी पन से परेशान होगें तब भारतीयता ही उन्हें शांति प्रदान करेगी. हम फ़िर भी उनके साथ सहयोग करेगें.

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  16. पर वक्त पड़े पर हम ही तो
    झांसी की रानी बनती हैं
    महिषासुर मर्दन की खातिर
    विकराल भवानी बनती हैं
    अपने ही जौहर से बढ़तीं रजपुती आनों की शानें

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  17. sahii keha rakesh ji aur jab naari yae rup dhaaran kartee haen tabhie uski ouja aur aaradhna hotee haen
    bhay bin hoi naa preetee

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  18. bahoot khoob!!
    --Aapka shubhchintak

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  19. हर बार की तरह लाज़बाब
    बहुत सुंदर प्रस्तुति

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