एक मित्र की सुनाई हुई एक सीख आज तक भुला नही हूँ ! प्रस्तुत है !
मांगी चीज कभी न दीजै , जब मांगे तबही दे दीजै
ना ही चोरी ना ही पाप , भूल जाए तो रक्खो आप !
Monday, June 30, 2008
Saturday, June 14, 2008
शुब्बी की ससुराल !
हाल न जाने क्या होना है
शुब्बी की ससुराल का
दिखने में तो छोटी हैं
लेकिन बड़ी सयानी हैं
कद काठी में भारी भरकम
मां की राज दुलारी हैं
नखरे राज कुमारी जैसे
इनकी मस्ती के क्या कहने
एक पैर पापा के घर में
एक पैर ननिहाल है
दोनों परिवारों में यह अधिकार जमाये प्यार का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
चुगली करने में माहिर हैं
झगडा करना ठीक नहीं
जब चाहें शिल्पी अन्नू को
पापा से पिटवातीं हैं !
सेहत अपनी मां जैसी है
भारी भरकम बिल्ली जैसी
जहाँ पै देखें दूध मलाई
लार वहीं वहीं टपकातीहैं
सुबह को हलुआ, शाम को अंडा, रात को पीना दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
सारे हलवाई पहचाने
मोटा गाहक इनको मानें
एक राज की बात बताऊं
इस सेहत का राज बताऊं
सुबह शाम रबडी रसगुल्ला
ढाई किलो दूध का पीना
रबडी और मलाई ऊपर
देशी घी पी जाती हैं
नानी दुबली होती जातीं देख के खर्चा दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
फिर भी शुब्बी प्यारी है
सबकी राज दुलारी है
मीठी मीठी बातें कहकर
सबका मन बहलाती है
खुशियों का अहसास दिलाये किस्सा राजकुमारी का
हाल न जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
शुब्बी की ससुराल का
दिखने में तो छोटी हैं
लेकिन बड़ी सयानी हैं
कद काठी में भारी भरकम
मां की राज दुलारी हैं
नखरे राज कुमारी जैसे
इनकी मस्ती के क्या कहने
एक पैर पापा के घर में
एक पैर ननिहाल है
दोनों परिवारों में यह अधिकार जमाये प्यार का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
चुगली करने में माहिर हैं
झगडा करना ठीक नहीं
जब चाहें शिल्पी अन्नू को
पापा से पिटवातीं हैं !
सेहत अपनी मां जैसी है
भारी भरकम बिल्ली जैसी
जहाँ पै देखें दूध मलाई
लार वहीं वहीं टपकातीहैं
सुबह को हलुआ, शाम को अंडा, रात को पीना दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
सारे हलवाई पहचाने
मोटा गाहक इनको मानें
एक राज की बात बताऊं
इस सेहत का राज बताऊं
सुबह शाम रबडी रसगुल्ला
ढाई किलो दूध का पीना
रबडी और मलाई ऊपर
देशी घी पी जाती हैं
नानी दुबली होती जातीं देख के खर्चा दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
फिर भी शुब्बी प्यारी है
सबकी राज दुलारी है
मीठी मीठी बातें कहकर
सबका मन बहलाती है
खुशियों का अहसास दिलाये किस्सा राजकुमारी का
हाल न जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
Thursday, June 5, 2008
कविता लेखन
देवी जी ने मूड बनाया कविता लिखतीं कचरे पे !
कागज कलम उठा कर उसने करी चढाई कचरे पे
चार दिनों से यारो घर में भोजन बनता कचरे सा
कविता बने यथार्थ वादी, घर को बदला कचरे सा
कचरे-वालों को बुलवाने बेटा भेजा कचरे पर !
इंटरव्यू देने को आए सड़े भिखारी कचरे से !
देवीजी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की
घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आयीं कचरे की
लिख लिख कागज फाड़ के फेंके, ढेर लगाया कचरे का
गृह सुन्दरता रास न आए प्रीत लगाई कचरे से
कहतीं मेरी कविता का स्टैंडर्ड नही है कचरे सा
काल पात्र में रखने लायक कविता मेरी कचरे की
जैसे कभी नहीं खाली हो सकती धरती कचरे से
वैसे मेरी यह रचना भी अमर रहेगी कचरे सी !
सतीश
कागज कलम उठा कर उसने करी चढाई कचरे पे
चार दिनों से यारो घर में भोजन बनता कचरे सा
कविता बने यथार्थ वादी, घर को बदला कचरे सा
कचरे-वालों को बुलवाने बेटा भेजा कचरे पर !
इंटरव्यू देने को आए सड़े भिखारी कचरे से !
देवीजी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की
घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आयीं कचरे की
लिख लिख कागज फाड़ के फेंके, ढेर लगाया कचरे का
गृह सुन्दरता रास न आए प्रीत लगाई कचरे से
कहतीं मेरी कविता का स्टैंडर्ड नही है कचरे सा
काल पात्र में रखने लायक कविता मेरी कचरे की
जैसे कभी नहीं खाली हो सकती धरती कचरे से
वैसे मेरी यह रचना भी अमर रहेगी कचरे सी !
सतीश
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