Wednesday, July 16, 2014

आँख नीची रखे,औ दुम को हिलाते रहिये - सतीश सक्सेना

उजड़े अरमानों के, ये दीप जलाते रहिये !
हर सड़े फूल को, फ़िरदौस बताते रहिये !


क्या पता बॉस,कॉरिडोर में ही मिल जाए !
आँख नीची रखे,औ दुम को हिलाते रहिये !

कौन जाने वे कहीं,घर से लड़ के आये हों !
खुद को,हर कष्ट में,हमदर्द दिखाते रहिये !

जलने वाले भी तो, शैतान नज़र रखते हैं !
तीखी नज़रों से ये मुस्कान बचाते रहिये !

खांसने और खखारने पे,ध्यान क्यों देते !
आप काली को ,गुलाबी ही बताते रहिये !

3 comments:

  1. यही करते हैं लेकिन फिर भी नजर में नहीं आते हैं कुछ और भी बताइये हा हा ।

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  2. काफी मज़ेदार और सुन्दर रचना

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