उजड़े अरमानों के, ये दीप जलाते रहिये !
हर सड़े फूल को, फ़िरदौस बताते रहिये !
क्या पता बॉस,कॉरिडोर में ही मिल जाए !
आँख नीची रखे,औ दुम को हिलाते रहिये !
कौन जाने वे कहीं,घर से लड़ के आये हों !
खुद को,हर कष्ट में,हमदर्द दिखाते रहिये !
जलने वाले भी तो, शैतान नज़र रखते हैं !
तीखी नज़रों से ये मुस्कान बचाते रहिये !
खांसने और खखारने पे,ध्यान क्यों देते !
आप काली को ,गुलाबी ही बताते रहिये !
हर सड़े फूल को, फ़िरदौस बताते रहिये !
क्या पता बॉस,कॉरिडोर में ही मिल जाए !
आँख नीची रखे,औ दुम को हिलाते रहिये !
कौन जाने वे कहीं,घर से लड़ के आये हों !
खुद को,हर कष्ट में,हमदर्द दिखाते रहिये !
जलने वाले भी तो, शैतान नज़र रखते हैं !
तीखी नज़रों से ये मुस्कान बचाते रहिये !
खांसने और खखारने पे,ध्यान क्यों देते !
आप काली को ,गुलाबी ही बताते रहिये !