- मुझे अब यह याद भी नही कि मेरी माँ कौन थी और उसका दूध कैसा था, जब से आँख खुली, अम्मा के हाथ से ही खाना मिलता रहा है, और अप्पा के पैरों में बैठना अच्छा लगता है !
- मैं एक पल के लिए भी आपको अपनी आंख से ओझल नही होने देना चाहता, आपसे थोडी भी दूरी मेरे लिए बहुत दर्दनाक है इसीलिये मैं आपके साथ साथ ही चलता हूँ !
- आपकी घर से दूर भी हों तब भी मुझे पता चल जाता है कि आपके आने का समय आ गया है !उस समय मैं बहुत खुश होता हूँ ! जब मेरे साथ खेलने का समय देते हो मैं अपने को धन्य मानता हूँ !
- मुझे मालूम है कि मेरी उम्र दस बारह साल ही है, आपसे बिछुड़ने की कल्पना मेरे लिए बेहद दर्दनाक होगी !
- आप मेरी बात नही समझ पाते मगर मैं आपकी हर इच्छा समझने का प्रयत्न करता हूँ, कई बार मुझे समझने में थोड़ा समय लगता है हो सके तो थोड़ा समय दिया करें !-आप मुझ पर विश्वास रखें मैं आपका जानबूझ कर कोई नुक्सान नहीं करना चाहता
- आप मुझसे अधिक देर तक नाराज नहीं रहा करिए, मेरे स्वास्थ्य के लिए यह बहुत आवश्यक है !गुस्से में, सज़ा के लिए, मुझे बंद न करें ! आपके पास आपके मित्र,अन्य काम, और मन बहलाने के बहुत तरीके हैं मगर मेरे पास सिर्फ़ आप हैं !
- चाहे मैं आपकी बात न भी समझ पाऊं तब भी आप मुझसे बात किया करें, मैं आपकी आवाज़ पहचानता हूँ और इसे सुनना मुझे अच्छा लगता है !
- आप विश्वास करें आपका प्यार मुझे मरते दम तक याद रहेगा !
- जब भी आप मुझे मारते हैं और चोट पंहुचाते हैं, याद रखें मैं आपको अपने तेज दांतों एवं नाखूनों से अधिक चोट पहुँचा सकता हूँ मगर मैं अपने गुस्से पर आप से अधिक काबू रखता हूँ और ऐसा कभी नही कर सकता क्योंकि मैं आप से बहुत प्यार करता हूँ !
- मेरे सुस्त या आपकी बात न मानने पर आप मुझे सज़ा देते हो, मगर आपने कभी नही सोचा कि सही खाना या अधिक देर धूप में रहने के कारण मैं बीमार हूँ ! दसियों बार बीमार होने पर भी आपको कभी महसूस भी नही होने दिया जबकि आपकी हर बीमारी का मुझे पता रहता है और मुझे उस दिन खाना तक अच्छा नही लगता !
- सिर्फ़ एक प्रार्थना है, बूढे होने पर मुझसे चिढ़ना नही, उस समय मुझे आपके प्यार की अधिक जरूरत होगी , आप भी एक दिन बूढे होंगे !
- मेरे जीवन के आखिरी दिनों में मेरे साथ जरूर देना , उस समय यह नही कहना कि मैं इसके साथ नही रह सकता , पूरे जीवन मैं आपके साथ साये की तरह रहा, आखिरी समय मुझे आपका प्यार चाहिए !
Wednesday, November 12, 2008
प्यार करना सीखें - गूफी से !
Saturday, October 11, 2008
ये रिश्ते खून के .....
अपने भाई समान मित्र की पत्नी का आपरेशन होना है, उन्हें खून देने की व्यवस्था करने का निर्देश मिला जान, परिजनों ने खिसकना शुरू कर दिया, मेरे दोस्त को पहले से ही अपना एनेमिक होना याद आ गया और उनके हट्टे कट्टे भाई को उनकी ६५ वर्षीया माँ ने रोक लिया कि उसे कमजोरी हो गयी तो अपने काम पर नही जा पायेगा, हमारे घर में एक ही लड़का है, उसी पर सारे घर का दारोमदार है, खून देने को मैं दे देती ... पर डॉ का कहना है कि मेरी उम्र ज्यादा है ...... मैं अचंभित सा यह सब देख रहा था कि सगी बहिन जिसने बचपन से इसकी रक्षा के लिए राखी बाँध कर भगवान् से दुआ मनाई होगी कि मेरे भाई को सुरक्षित रखना और आज बहिन की आवश्यकता पर यह सगा भाई , पति और यहाँ तक कि सगी माँ को भी बेटे की चिंता अधिक थी न की अपनी बेटी की ....
ब्लड देते समय मैं सोच रहा था इन रिश्तों के बारे में ..........
Wednesday, October 1, 2008
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
जब से व्याही हूँ साथ तेरे
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें
बुड्ढे बुढ़िया के पैर छुएं,
फूटी किस्मत, अरमान लुटे, अब बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना नौकर हैं, न चाकर हैं
न ड्राईवर है, न वाचमैन,
घर बैठे कन्या दान मिला
ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें
ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
पत्नी सावित्री सी चहिये ?
पतिपरमेश्वर का ध्यान रखे
गंगा स्नान के मौके पर
जी करता धक्का देने को !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम प्रेतविनाशक तुम कायर
हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
जब तुम दफ्तर भग जाते हो
हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें
बुड्ढे बुढ़िया के पैर छुएं,
फूटी किस्मत, अरमान लुटे, अब बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना नौकर हैं, न चाकर हैं
न ड्राईवर है, न वाचमैन,
घर बैठे कन्या दान मिला
ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें
ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
पत्नी सावित्री सी चहिये ?
पतिपरमेश्वर का ध्यान रखे
गंगा स्नान के मौके पर
जी करता धक्का देने को !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम प्रेतविनाशक तुम कायर
हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
जब तुम दफ्तर भग जाते हो
हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
Monday, September 29, 2008
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
समझ प्यार की नही जिन्हें है
समझ नही मानवता की
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त नही, हो पाती हैं !
दुनिया चाहे कुछ भी सोचे कभी न हाथ पसारूंगा !
विस्तृत ह्रदय मिला इश्वर से
सारी दुनिया ही घर लगती
प्यार नेह करुना और ममता
मुझको दिए विधाता ने
यह विशाल धनराशि प्राण अब क्या मैं तुमसे मांगूंगा !
जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में, रहने आये
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं क्या निर्धन से मांगूंगा !
प्रिये दान से बढ कर कोई
धर्म नही है, दुनिया में !
खोल ह्रदय कर प्राण निछावर
बड़ा प्यार है, दुनिया में
मेरा जीवन बना दान को क्या याचक से मांगूंगा !
गर्व सदा ही खंडित करता
रहा कल्पनाशक्ति कवि की
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे गर्वीलों का,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, क्या गर्वीलों से मांगूंगा !
Tuesday, September 23, 2008
हम अपनी शिक्षा भूल चले !
बहुत दिन से इच्छा थी कि मैं अपने संक्षिप्त ब्लाग अनुभवों के बारे में लिखूं ! सो लिख डाला ! मेरा एक ही अनुरोध है कि "लाइट ले यार" !
कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए !
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक, भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,जो दम सेवा का भरते हैं
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !
कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !
कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !
कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए !
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक, भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,जो दम सेवा का भरते हैं
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !
कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !
कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे, पर अपनी शिक्षा भूल चले !
Thursday, July 31, 2008
हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
कुछ रंग नहीं, कुछ माल नहीं
कुछ मस्ती वाली बात नही
कुछ खर्च करो, कुछ ऐश करो
कुछ डांस करें, कुछ हो जाए !
जब मौज नहीं कोई धूम नहीं , तब बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या कहते हो ? क्या करते हो
है ध्यान कहाँ ? कुछ पता नहीं
ना टाफी है, ना चाकलेट ,
ना रसगुल्ला, ना बर्गर है
हम मस्त कलंदर धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
मस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना गुलछर्रे, ना हो हल्ला,
हम धूमधाम,तुम सन्नाटा
हम छक्के हैं तेंदुलकर के ,
तुम वही पुराना नजराना
हम रंग जमा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
हम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
कुछ मस्ती वाली बात नही
कुछ खर्च करो, कुछ ऐश करो
कुछ डांस करें, कुछ हो जाए !
जब मौज नहीं कोई धूम नहीं , तब बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या कहते हो ? क्या करते हो
है ध्यान कहाँ ? कुछ पता नहीं
ना टाफी है, ना चाकलेट ,
ना रसगुल्ला, ना बर्गर है
हम मस्त कलंदर धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
मस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना गुलछर्रे, ना हो हल्ला,
हम धूमधाम,तुम सन्नाटा
हम छक्के हैं तेंदुलकर के ,
तुम वही पुराना नजराना
हम रंग जमा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
हम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
Sunday, July 13, 2008
पता नहीं क्यों खाते पीते, पढने की बातें, होती हैं !
डी पी एस ग्रेटर नॉएडा के, एक क्षात्र, रानू , जो कि, पढने लिखने में बहुत अच्छे होने के साथ साथ, खाने पीने में, भी मस्त हैं, के मन की बातें यहाँ दे रहा हूँ ! जब भी हम सब साथ साथ , खाने पर एक साथ बैठते तो बच्चों से उनके भविष्य की चर्चा तथा क्लास में उनकी पोजीशन की चर्चा जरूर होती ! स्वादिष्ट खाने के समय , पढाई की चर्चा , उनके मुहं का टेस्ट बदलने के लिए काफ़ी होती है !
मन मयूर सा नाच रहा हो,
तब ये बातें होती हैं !
पता नहीं क्यों खाते पीते, क्लास की बातें, होती हैं ?
मन को काबू कर , हिन्दी
और ग्रामर लेकर बैठा हूँ
मगर ध्यान में बार बार, क्यों आतिशबाजी होती है !
नाना पापा की बातें सुन
नींद सी आने लगती है
ऐसे बढ़िया मौसम में, एक्जाम की बातें, होती हैं !
सारे अक्षर गडमड होते
ध्यान पेट पर जाता है,
खाने पीने के मौसम मे, दुःख की बातें, होती हैं !
विश्व रेसलिंग के मौके पर
मन मयूर सा नाच रहा हो,
तब ये बातें होती हैं !
पता नहीं क्यों खाते पीते, क्लास की बातें, होती हैं ?
मन को काबू कर , हिन्दी
और ग्रामर लेकर बैठा हूँ
मगर ध्यान में बार बार, क्यों आतिशबाजी होती है !
नाना पापा की बातें सुन
नींद सी आने लगती है
ऐसे बढ़िया मौसम में, एक्जाम की बातें, होती हैं !
सारे अक्षर गडमड होते
ध्यान पेट पर जाता है,
खाने पीने के मौसम मे, दुःख की बातें, होती हैं !
विश्व रेसलिंग के मौके पर
होम वर्क को करते करते
ग्रेट खली और इंग्लिश ग्रामर, आपस में गुथ जाते हैं !
कठिन गणित का प्रश्न क्लास
में, मैडम जब समझाती हैं,
उसी समय क्यों याद हमारे, कुकरी क्लासें, आती हैं !
हाथ में बल्ला लेकर जब मैं
याद सचिन को करता हूँ ,
उसी समय में ध्यान हमारे, कृष्णा मैडम आतीं हैं !
ग्रेट खली और इंग्लिश ग्रामर, आपस में गुथ जाते हैं !
कठिन गणित का प्रश्न क्लास
में, मैडम जब समझाती हैं,
उसी समय क्यों याद हमारे, कुकरी क्लासें, आती हैं !
हाथ में बल्ला लेकर जब मैं
याद सचिन को करता हूँ ,
उसी समय में ध्यान हमारे, कृष्णा मैडम आतीं हैं !
पता नहीं क्यों खाते पीते, पढने की बातें, होती हैं !
Monday, June 30, 2008
आजकल की सीख !
एक मित्र की सुनाई हुई एक सीख आज तक भुला नही हूँ ! प्रस्तुत है !
मांगी चीज कभी न दीजै , जब मांगे तबही दे दीजै
ना ही चोरी ना ही पाप , भूल जाए तो रक्खो आप !
मांगी चीज कभी न दीजै , जब मांगे तबही दे दीजै
ना ही चोरी ना ही पाप , भूल जाए तो रक्खो आप !
Saturday, June 14, 2008
शुब्बी की ससुराल !
हाल न जाने क्या होना है
शुब्बी की ससुराल का
दिखने में तो छोटी हैं
लेकिन बड़ी सयानी हैं
कद काठी में भारी भरकम
मां की राज दुलारी हैं
नखरे राज कुमारी जैसे
इनकी मस्ती के क्या कहने
एक पैर पापा के घर में
एक पैर ननिहाल है
दोनों परिवारों में यह अधिकार जमाये प्यार का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
चुगली करने में माहिर हैं
झगडा करना ठीक नहीं
जब चाहें शिल्पी अन्नू को
पापा से पिटवातीं हैं !
सेहत अपनी मां जैसी है
भारी भरकम बिल्ली जैसी
जहाँ पै देखें दूध मलाई
लार वहीं वहीं टपकातीहैं
सुबह को हलुआ, शाम को अंडा, रात को पीना दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
सारे हलवाई पहचाने
मोटा गाहक इनको मानें
एक राज की बात बताऊं
इस सेहत का राज बताऊं
सुबह शाम रबडी रसगुल्ला
ढाई किलो दूध का पीना
रबडी और मलाई ऊपर
देशी घी पी जाती हैं
नानी दुबली होती जातीं देख के खर्चा दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
फिर भी शुब्बी प्यारी है
सबकी राज दुलारी है
मीठी मीठी बातें कहकर
सबका मन बहलाती है
खुशियों का अहसास दिलाये किस्सा राजकुमारी का
हाल न जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
शुब्बी की ससुराल का
दिखने में तो छोटी हैं
लेकिन बड़ी सयानी हैं
कद काठी में भारी भरकम
मां की राज दुलारी हैं
नखरे राज कुमारी जैसे
इनकी मस्ती के क्या कहने
एक पैर पापा के घर में
एक पैर ननिहाल है
दोनों परिवारों में यह अधिकार जमाये प्यार का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
चुगली करने में माहिर हैं
झगडा करना ठीक नहीं
जब चाहें शिल्पी अन्नू को
पापा से पिटवातीं हैं !
सेहत अपनी मां जैसी है
भारी भरकम बिल्ली जैसी
जहाँ पै देखें दूध मलाई
लार वहीं वहीं टपकातीहैं
सुबह को हलुआ, शाम को अंडा, रात को पीना दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
सारे हलवाई पहचाने
मोटा गाहक इनको मानें
एक राज की बात बताऊं
इस सेहत का राज बताऊं
सुबह शाम रबडी रसगुल्ला
ढाई किलो दूध का पीना
रबडी और मलाई ऊपर
देशी घी पी जाती हैं
नानी दुबली होती जातीं देख के खर्चा दूध का
हाल जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
फिर भी शुब्बी प्यारी है
सबकी राज दुलारी है
मीठी मीठी बातें कहकर
सबका मन बहलाती है
खुशियों का अहसास दिलाये किस्सा राजकुमारी का
हाल न जाने क्या होना है शुब्बी की ससुराल का !
Thursday, June 5, 2008
कविता लेखन
देवी जी ने मूड बनाया कविता लिखतीं कचरे पे !
कागज कलम उठा कर उसने करी चढाई कचरे पे
चार दिनों से यारो घर में भोजन बनता कचरे सा
कविता बने यथार्थ वादी, घर को बदला कचरे सा
कचरे-वालों को बुलवाने बेटा भेजा कचरे पर !
इंटरव्यू देने को आए सड़े भिखारी कचरे से !
देवीजी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की
घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आयीं कचरे की
लिख लिख कागज फाड़ के फेंके, ढेर लगाया कचरे का
गृह सुन्दरता रास न आए प्रीत लगाई कचरे से
कहतीं मेरी कविता का स्टैंडर्ड नही है कचरे सा
काल पात्र में रखने लायक कविता मेरी कचरे की
जैसे कभी नहीं खाली हो सकती धरती कचरे से
वैसे मेरी यह रचना भी अमर रहेगी कचरे सी !
सतीश
कागज कलम उठा कर उसने करी चढाई कचरे पे
चार दिनों से यारो घर में भोजन बनता कचरे सा
कविता बने यथार्थ वादी, घर को बदला कचरे सा
कचरे-वालों को बुलवाने बेटा भेजा कचरे पर !
इंटरव्यू देने को आए सड़े भिखारी कचरे से !
देवीजी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की
घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आयीं कचरे की
लिख लिख कागज फाड़ के फेंके, ढेर लगाया कचरे का
गृह सुन्दरता रास न आए प्रीत लगाई कचरे से
कहतीं मेरी कविता का स्टैंडर्ड नही है कचरे सा
काल पात्र में रखने लायक कविता मेरी कचरे की
जैसे कभी नहीं खाली हो सकती धरती कचरे से
वैसे मेरी यह रचना भी अमर रहेगी कचरे सी !
सतीश
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