Friday, August 6, 2010

विलक्षण लेखन प्रतिभा के धनी खुशदीप सहगल - सतीश सक्सेना

 अगर आपको खुशियों का चरम आनंद, अपने पिता के साथ लेते, एक २५ वर्षीय बच्चे को महसूस करना हो तो खुशदीप सहगल की लिखी यह लघु कथा अवश्य पढ़ें ! यह मेरे जीवन में पढी गयी सबसे सुन्दर और जीवंत घटना है  ! लेखनी और विलक्षण प्रतिभा के धनी खुशदीप जी ने इसे जीवंत बना दिया ....

http://deshnama.blogspot.com/2010/04/blog-post_09.html 


ब्लाग जगत में लिखे गए लेखों में से, अगर सबसे अधिक संग्रहणीय और उदाहरण देने योग्य वाकयात  , देखने हैं तो देशनामा शायद अग्रणीय ब्लाग्स में से एक अवश्य होगा ! जितनी सरलता और हँसते हुए खुशदीप लिखते हैं शायद ही कोई  उन जैसा होगा ! 
अतुलनीय प्रतिभा के धनी खुशदीप सहगल  जी टीवी में  वरिष्ठ प्रोडयूसर है  !

Thursday, April 1, 2010

अविनाश वाचस्पति - राजीव तनेजा गैंग से सावधान !

                          बहुत खतरनाक गैंग है , आप इनकी शक्लों पर न जाइये घर बुलाते हैं ..बड़े प्यार से खाना खिलाते हैं ..और जब आपका मन प्रसन्न हो जाता है तब रसगुल्लों की प्लेट आपके हाथ देकर  अपना लैपटॉप खोल कर बैठते हैं और  इससे पहले कि आप कुछ समझ सकें, चौकन्ने हो सकें, निकलने की सोचें ,अपनी नयी रचना सुनना शुरू कर देते हैं  , और रचना भी इतनी लम्बी कि रसगुल्ले और लंच हज़म हो जाएँ मगर ख़त्म होने का नाम नहीं लेती और श्रीमान जी बंद होने का नाम नहीं लेते  ! उसके बाद उन कवियों का नंबर आता है जिन्हें श्रोता ढूंढे नहीं मिलते मुझे पूरा शक है कि उन कवियों से श्रोता इकट्ठे करने के लिए एक मोटी रकम ली जाती है जो श्रोताओं को दिए बिना साफ़ कर दी जाती है  ! उस दिन हम और खुशदीप सहगल इनके चक्कर में फँस गए और नहीं निकल पाए डॉ दराल और अजय झा चतुर खिलाड़ी हैं जो बढ़िया बहाने बना कर पहुंचे ही नहीं ! यकीन माने कविता सुनकर जितनी तालियाँ हम बजा रहे थे वे सब तब बजाते थे जब भाभी जी संजू तनेजा गरमा गरम पकौड़ों की प्लेट, मिठाइयाँ और चाय लातीं थीं  ! अलबेला खत्री भी बहुत सब्र किये बैठे सुनते रहे !   


लार्ज हेड्रन कोलाईडर के प्रयोग का आज दिन है , और हमें डरा रहें हैं कि दुनिया खत्म हो जायेगी तो इन्हें हमने यह शिकायत लिख भेजी  !


हमेशा के लिए विदाई लेते हैं दोस्त ,
पता नहीं कल रहे या न रहें
ऊपर भी आपसे एक शिकायत रहेगी ,
उस दिन राजीव तनेजा के घर पर
अपनी तो ३ पेज की रचना सुना दी
और हमारी बारी आयी तो बात ही घुमा दी


मेरा प्रस्ताव है कि सभी ब्लागर जब भी कहीं जाएँ तो पहले पूंछ लें कि कहीं कविता तो नहीं सुननी पड़ेगी और अगर सुननी पड़ी तो मेजवान को विदाई के समय हर ब्लागर को कम से कम ५०० रूपया पारिश्रमिक देना होगा  ! 
मगर यह लोग भी कम चालाक नहीं हैं भाभी जी से बिना पारिश्रमिक खाना और हमें बिना पारिश्रमिक श्रोता बनने 
पर मजबूर करते हैं  ! 


सलाह दें कि क्या किया जाये ??  

Saturday, March 27, 2010

ब्लाग जगत से अधिक उम्मीदें न रखें ! - सतीश सक्सेना

अलका जी !
सरवत जमाल को दोस्त ही नहीं बनाता तो अच्छा था कम से कम यह तकलीफ तो नहीं होती , निर्मला कपिला जी की बात समझ आयेगी या नहीं मैं नहीं जानता, मगर उन्हें यह जरूर बतलाइयेगा कि इस ब्लाग जगत में लोगों को बहुत याद रखने की आदत नहीं है  ! कुछ दिनों में यह सरवत जमाल को भूल जायेंगे मगर निर्मला जी जैसे अथवा उनके कुछ नालायक लोग ( मेरे जैसे ) दर्द के साथ याद रखेंगे कि नाहक एक बेहद संवेदनशील दोस्त बनाया, जो हमें भी तकलीफ देकर चला गया ! 

अपने प्यारों के बीच संवेदनशीलता अच्छा गुण है ! रास्ता चलते लोगों से अपनी संवेदनशीलता की क़द्र करवाने की इच्छा करके सिर्फ अपने दोस्तों को दुखी करना भर होता है, और हमारे हुजूर दोस्त तो शायर हैं , अगर रास्ता चलते लोगों की बेहूदगियों की शिकायत करनी है तो शेरों में जगह  दें जिससे दुनिया की आँखें खुलें ! किससे उम्मीदें कर रहे हैं यहाँ ... ??

साहिल के तमाशाई , हर डूबने वाले पर  ,
अफ़सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते !

दुखी होकर, ग़ज़ल लेखन रोक कर, आप सिर्फ एक घटिया मानसिकता का मकसद कामयाब कर रहे हैं  भाई जी !
इंतज़ार में, आपका 

Saturday, March 20, 2010

किसी नारी के संग सिनेमा जाने का दिल करता है !

अपने किशोरावस्था के दिनों की यादें,  बरसों पहले लिखी इस हास्य रचना के जरिये ताजा हो  जाती हैं , आपको मुस्कराने हेतु नज़र है !


सोचता था बचपन से यार
बड़ा कर दे जल्दी भगवान
मगर अब बीत गए दस साल
जवानी बीती जाये यार ,
किसी नारी के संग ,सिनेमा जाने का दिल करता है !

क्लास में छिप छिप के मुस्कायं
फब्तियां करती दिल में चोट
अकेले में जब करते बात
पैर की जूती लेँ निकाल
किसी बगिया में इनके साथ ,घूमने का दिल करता है !

दूर ही बैठे है दिल थाम ,
आह भरते रहते मन मार
देख कर मेरी भोली शक्ल
तुम्हारा मुहं हो जाता लाल
क्रोध में जलती आँखें देख, दंडवत का दिल करता है !

अचानक दिल में उठी हिलोर
बुलाया तुमने आख़िर मोय
लगाकर इत्र फुलेल तमाम
सोंचता प्रिया मिलन की बात
देख प्रिंसिपल तेरे साथ, भागने का दिल करता है !

प्यार से पत्र लिखा तुमको
लिफाफा पोस्ट किया तुमको
एक दिन बापस लौटा घर
घर में तुम बैठी मम्मी पास
अरे फट जाये धरती आज, समाने का दिल करता है

Tuesday, March 9, 2010

हम महिला विषयों पर न लिखें ? - सतीश सक्सेना



डॉ अरविन्द मिश्रा का एक चुभता हुआ कमेंट्स मेरा ध्यान उनकी ओर खींच ले गया है  " चलिए आप उदासीन और तटस्थ रहकर इसी तरह बीच बीच में आकर अपनी घोर चिंता व्यक्त करते रहा करिए -ब्लागजगत का जो होना है वह तो हो ही जाएगा "   


और मुझे लगा कि जैसे अरविन्द मिश्रा ने मुझसे कोई बहुत गहरी और सच्ची शिकायत की हो कि आप सोते हुए ही जागते रहो का नारा लगाते रहो ! और मैं तिलमिलाते हुए नींद से उठ गया !


अभी हाल में मिथिलेश दुबे  ने एक लेख लिख कर लगता है गज़ब ही कर दिया ! मैं कभी समझ नहीं पाऊंगा कि नारी विषय पर लिखने का अधिकार केवल कुछ महिलाओं का ही होना चाहिए ? किसी अन्य के लिखने पर जैसा यहाँ विरोध होता है, उससे तो ऐसा ही लगता है ! 


अजीब  हास्यास्पद कल्पना है कि नारी पर पुरुष लिखे तो पित्रवादी सत्ता लिखवा रही है ,मिथिलेश जैसा १९ वर्षीय विलक्षण लेख़क लिखे तो भी बवाल  ! मिथिलेश को कोई हक़ नहीं कि वह अपने पारिवारिक संस्कारों   के हिसाब से अपनी बहिन को कोई हिदायत दे सके अथवा अपनी माँ को कोई समर्थन दे ! 


मेरी जिन महिलाओं से बात हुई  वे खुद इस बात को मानती हैं कि कुछ लोग अपना नाम कमाने के लिए दूसरों को फ़ोन करके प्रति कमेंट्स करने के लिए उकसाते हैं , और अधिकतर महिलाएं यह न चाहते हुए  भी  विरोध नहीं कर पातीं ! 


महिलाओं पर न लिखने का अर्थ, स्नेह पर ना लिखना , प्यार पर न लिखना , जीवन पर न लिखना , ममता पर न लिखना ही है ! हमारे जीवन में बचेगा ही क्या अगर महिला वहाँ से हटा ली जाये ! मेरा महिला लेखकों से अनुरोध है कि वे खुले मन से विचार करें !   


क्या शिकवा है क्या हुआ तुम्हे 
क्यों आँख पे पट्टी बाँध रखी,
क्यों नफरत लेकर, तुम दिल में 
रिश्ते, परिभाषित करती हो,
हम पुरूष ह्रदय, सम्मान सहित, कुछ याद दिलाने बैठे हैं!

Sunday, February 28, 2010

रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे ... सतीश सक्सेना



होली के अवसर पर हर वर्ष की तरह कुछ मित्रों के घर और परिवार में होली मिलने और खेलने जाता रहा हूँ, जब भी बाहर निकलने की सोचता हूँ तो अक्सर उदासीन होता हूँ, मगर बाहर जवानों की भीगती हुई टोली और जोश देखकर मूड बनते देर नहीं लगती और बाकी कसर चलते हुए मस्त मयूजिक से पूरी हो जाती है ...
"रंग लेके दीवाने आगये , होली के बहाने आ गये..."
या संजीव कुमार की ढोलक की थाप और अमिताभ का मस्त और सदाबहार गीत  
"रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे ..."    


इस माहौल में मूड बनते देर नहीं लगती और निकल पड़ते अपने अन्तरंग यारों के घर ! मगर जिसके घर पहुंचे अधिकतर हमारे दोस्त ( ४०-६० वर्षीय ) आराम से अखबार पढ़ते और भाभी जी किचेन में होली के पकवान बनाने में व्यस्त ! जब कारण पूंछा तो एक ही जवाब बच्चे सुबह सुबह निकल गए अपने दोस्तों के घर और हम इस उम्र में होली किससे खेलें ??


मैंने आज तक एक भी मित्र ऐसा नहीं देखा जो अपनी पत्नी के साथ या पति के साथ होली खेलते देखा गया हो !    
वंदना अवस्थी दुबे   ने होली पर एक परिचर्चा का आयोजन किया  "होली के रंग-किसके संग?" 






यदि आपको चुनना हो तो किसे चुनेंगे? पत्नी, प्रेयसी, मित्र या अन्य कोई....

और आज जब वंदना जी यही जवाब ब्लाग जगत में पूंछा तो अधिकांश दिग्गजों ने जो शादी शुदा थे एक ही रहस्य उद्घाटन किया कि वे सिर्फ पत्नी के साथ ही होली खेलना पसंद करते हैं  किसी को भी अपने केशव स्वरुप की याद नहीं आयी हर जगह का माहौल राम मय ही था  ! 
पहली बार लगा हिन्दी ब्लॉग जगत में  कितनी  ईमानदारी है  दिल चाहे कुछ भी कहे ...
हमारा दिल तो ऐसे माहौल में यही कहता है कि 
"दिल कहे रुकजा रे रुकजा यहीं पर कहीं 
जो बात इस जगह है , कहीं पर नहीं  " 
मगर अब इस उम्र में इस आवाज को सुने कौन ???
सो बीवी से यही कहेंगे ' तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे .....

Friday, February 26, 2010

आइये सफल ब्लागर बनने के कुछ गुर आपको भी सिखाएं !

  • सबसे पहले अपना मूल्य समझो और मान लो कि तुम सबसे अच्छे ब्लागर हो , इसके बाद एक लिख्खाड को  छांट लो  जो तुम्हारे ब्लाग पर कोई कमेंट्स न देता हो !
  • इस लिक्खाड़ की नवीनतम पोस्ट पर जो कुछ भी लिखा हो उसके विरोध में  एक लम्बी टिप्पणी लिख डालो , ध्यान रहे इस टिप्पणी में  बेहद घटिया और अपमानजनक भाषा का ही उपयोग किया जाये  और जिससे ऐसा लगे कि यह ब्लागर दुनिया का सबसे निकृष्टतम व्यक्ति है और अगर इसे न रोका गया तो देश से ब्लागिंग का नाम ही मिट जायेगा ! इससे बड़े से बड़ा ब्लागर भी तुरंत अपनी बचाव मुद्रा में आ जायेगा !
  • जब वह ब्लागर आपके  लिए अपना स्पष्टीकरण देने लगे  किसी भी कीमत में आप उसे मत स्वीकारें , बल्कि अपनी भाषा देश और समाजरक्षक  की बना लें , आप देखेगे  तब तक आपकी टिप्पणी संख्या २०-३० को तुरंत क्रास कर जाएगी ! और जो कभी पहले आपके ब्लाग पर नहीं आये थे वे भी आपको समर्थन करते पाए जायेंगे ! 
  • जो आपका समर्थन कर रहे हैं , वे उसी दिन से आपके भक्त ब्लागर बन जायेंगे  और यह उम्मीद करेंगे कि आपका वरदहस्त उन्हें भविष्य में मिलता रहे ! 
  • शेष अगले अंक में .....

Tuesday, February 23, 2010

हम और तुम !

लगभग २० वर्ष पहले लिखी एक रचना ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ , पत्नी को मनाने की असफल कोशिश करता एक बेचारे पति  का यह चित्रण बहुत स्थानों पर आज भी वास्तविकता है ....


तुम मेरे दिल की रानी हो 
मैं तेरे दिल का कचरा हूँ ,
पति ढूँढा है,लक्ष्मीवाहन
तुम हो देवी सौभाग्यवती 
तुम हो खिचडी में घी जैसी , मैं चटनी जैसा दीखता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान  प्रिये  ! कैसे समझाऊँ  प्यार प्रिये   !!


तुम हो बिलकुल जीनत अमान 
मैं प्राण सरीखा ,  दिखता  हूँ 
तुमतो हेमा की  कापी  हो ,
मैं प्रेम चोपड़ा ,   लगता हूँ  !
दोनों पहिये बेमेल  मिले  , जीवन गाडी है खडी  प्रिये  !
मैं हूँ कैसा नादान  प्रिये ,  कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये   !!


मैं एक गाँव का हूँ , गंवार ,
तुप छैल छबीली दिल्ली की
मैं  राम राम और पाँव छुऊँ 
तुम हाय हाय ओंर हेल्लो की  ,
जीवन गाडी के दो पहिये , दोनों कैसे  बेमेल मिले  !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये   कैसे समझाऊँ  प्यार प्रिये !


तुम हो गन्ने की रस जैसी 
मैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ 
तेरा चेहरा गुलाब जैसा 
मैं  नोडू जैसा  दीखता हूँ 
तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे  समझाऊँ प्यार  प्रिये   !!

  

Saturday, February 20, 2010

ताऊ की दुकान से सावधान !


ताऊ  की दुकान से सावधान ! लिखने का मतलब यह बिलकुल नहीं लें कि मैं ताऊ की बेईमानियों का खुलासा करने जा रहा हूँ , मेरा कोई दिमाग ख़राब नहीं है कि ताऊ की चालाकियों का पर्दाफाश करने की हिम्मत करुँ  मुझे खूब पता है  कि  नियम नंबर ६ के अनुसार 
"६. आप यह समझ ले कि अगर आपने हमारे द्वारा प्रदत पुरस्कारों की अवमानना की या उसके विरोध में कुछ लिखा या आंदोलन किया तो जैसे ही आप कंप्युटर पर लिखने बैठेंगे आपका कंप्युटर टुटकर दो टुकडे हो जायेगा. यह सत्य वचन हैं. फ़िर हमें दोष मत दिजियेगा."
इस महंगाई के जमाने में ताऊ के काले जादू और टोटके का गुस्सा झेलने की ताकत  मुझमे नहीं है ! मगर ताऊ की दुकान पर बढ़ती हुई ब्लागरों की भीड़ देख मन में बेचैनी बढ़ती जा रही है , इन ब्लागरों को ताऊ कभी पहेलियों के जरिये और कभी ब्लागर मीट के जरिये लुभावने विज्ञापन देकर बुलाता है  और अंत में  सीधे साधे ब्लागरों की जेब खाली की जाती है ! कुछ नमूने देखें .....


और अब ताऊ ने वजन घटाऊ प्रोडक्ट भी समीर लाल जी ने उपयोग करना शुरू कर दिए हैं ....समझ में नहीं आ रहा है कि क्या वाकई ताऊ प्रोडक्ट इतने अच्छे हैं कि समीर लाल इतने गोरे हो गए  और अब उनकी  सुडौल काया भी इकहरी होने जा रही है  ? 
आप लोग खुद ही फैसला करें  और अपनी राय दें ,अगर समीर लाल के सर्टिफिकेट के हिसाब से यह प्रभावशाली हैं , तब तो जवानी बापस लाने वाली क्रीम का इंतज़ार हमें भी रहेगा ! 

    Saturday, February 13, 2010

    सुमन वर्षा !

    "आपका nice मैं भी अपनाना चाह रहा हूँ  ! सप्ताह में कम से एक दिन हम लोग nice  से काम चलायें , यह सुमन जी की ईजाद  के प्रति एक इन्साफ होगा और उन्हें लोकप्रियता भी मिलेगी !"


    उपरोक्त सुझाव कमेंट्स के जरिये आज मैंने अनिल पुसाद्कर के ब्लाग पर दिए हैं ! सुमन जी पर मेरा ध्यान "मेरे गीत" पर लिखी अपनी पोस्ट "ब्लाग जगत में चलता हुआ एक अघोषित युद्ध " पर किये गए कमेंट्स के कारण गया था ! ऐसी गंभीर पोस्ट पर nice  पढ़ कर पहले कुछ अजीब सा लगा मगर आज अनिल पुसाद्कर जैसे गंभीर लेख़क को भी एक ब्लाग पर यह कहते देखा कि आज मैं nice से ही काम चलाऊँगा तो लगा कि अनिल भी कुछ हद तक स्वार्थी हैं, अरे कापी करने के लिए कम से कम आभार तो व्यक्त करो सो यह एक आभार पोस्ट है सुमन वर्षा ( अरविन्द जी से आभार सहित ) के प्रति  !  


    आश्चर्य का विषय है कि अक्सर पोस्ट छपने के कुछ ही क्षणों में nice लिखा हुआ मिल जाता है , इससे हम जैसे कंगाल जिन्हें  गिने  चुने कमेंट्स भी मुश्किल से ही मिलते हैं, धनवान हो जाते हैं ! सुमन जी का यह संक्षिप्त कमेंट्स जैसे डूबते को सहारा सा लगता है ! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पोस्ट का स्वरुप कैसा है सवाल है कि मेहनत कर के लिखी गयी पोस्ट पर उस मेहनत के लिए nice एक अच्छा पुरस्कार है ! अभी दिल्ली में में हुए ब्लागर मिलन में भी इसकी खूब चर्चा हुई थी ! सोचता हूँ कि nice देकर कम समय में बहुत से ब्लागरों को हिम्मत दे पाऊंगा  ! लोग  कुछ  तो सोचेंगे ही .... और नाम भी होगा ....! 


    धन्यवाद सुमन जी को !




    Saturday, February 6, 2010

    चाँद पर मेरी प्रापर्टी और उड़नतश्तरी !

    "Approximately 250 very well celebrities as well as 2 former US presidents are now extraterrestrial property owner at moon." आसानी से विश्वास नहीं होता कि कोई कम्पनी  अंतर्राष्ट्रीय नियम और कानूनों का फायदा उठाते हुए  चन्द्रमा पर जमीन बेचने का अधिकार और पेटेंट  प्राप्त कर सकती है  ! 


    मगर यह सच है और अब तक वे  चाँद पर ३०० मिलियन एकड़ जगह , 176 देशों के लगभग २० लाख से अधिक लोगों  को बेच चुकी है !  इन लोगों में अमेरिका के २ भूतपूर्व राष्ट्रपति के अलावा नासा के ३० सदस्य , कई अन्तरिक्ष यात्री भी शामिल हैं ! 


    आसानी से इस प्रकार की कंपनी पर विश्वास नहीं होता , मगर पिछले साल २०० देशों के लगभग ७०० लेख और मिडिया कवरेज इस बात की गवाही दे रहा है , कि कुछ तो ऐसा है कि लोग इस पर विश्वास कर रहे हैं  ! अगर आपको फिर भी लगता है कि यह फ्रॉड है तो ध्यान रखियेगा विश्व में, इन्टरनेट पर सबसे अधिक मशहूर, उपभोक्ता अधिकारों  के लिए लड़ने वाली कंपनी  नेटचेक है , और चाँद पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर जमीन बेचने वाली कम्पनी ( लूनर एम्बेसी ) नेटचेक, इंटर नेट कामर्स ब्यूरो की एक मेम्बर है !   


    और मेरे इस जन्मदिन पर गरिमा (मेरी बेटी ) ने अचानक एक  खूबसूरत अलुमिनियम का डिब्बा देते हुए, मुबारक बाद देते हुए कहा कि आपकी बेटी  आपको चाँद पर एक एकड़ जगह  का मालिक बना रही है ,तो घर में किसी को अचानक यकीन नहीं हुआ  ! मगर उस डिब्बे में राखी हुई लूनर डीड  तथा बिल आफ राईट पढने से पता चलता है कि यह जगह  एरिया इ-५ क्वाड्रान्ट फाक्सत्रांत में स्थिति है !


    इस गिफ्ट के बाद , अपनी जमीन को देखने चाँद पर जाने  के लिए उड़न तश्तरी कहाँ से लाऊँ  .... एक बार भगवान् को बहुत मनाया था वह आप सबको पढवा  रहा हूँ ...


    मेरी कविता को भी भोले, ब्लागीवुड में नाम दिला दे
    कबाड़खाना बंद करा दे, मोहल्ले में आग लगा दे  !
    सारे पाठक मुझको ढूंढे ,ऐसी टी आर पी करवा दे
    मेरे ऊपर धन बरसा दे ,कुछ लोगों को सबक सिखादे

    मेरा कोई ब्लाग न पढता, ब्लाग जगत में भोले शंकर
    मेरे को ऊपर पहुंचा  दे , मेरा भी  झंडा  फहरा  दे !
    मेरे आगे पीछे घूमे दुनिया, ऐसी जुगत करा दे !
    एक आखिरी बिनती मेरी ,इतनी मेरी बात मान ले 
    समीर लाल को धक्का देकर,उड़नतश्तरी मुझे दिला दे !

    Thursday, January 21, 2010

    हमारी ५५ साला फोटू और ये जले हुए कमेंट्स ..

    सर्वत भाई के मेरे गीत पर किये गए  कमेंट्स  !
    " दुबारा आ गया हूँ, वसंत पंचमी की मुबारकबाद देने-एक दिन बाद. हम भारतीय विलम्ब से काम करने में माहिर हैं.
    एक जरूरी बात कहनी थी, बुरा न मानियेगा.....



    क्या किसी साउथ इंडियन फिल्म में खलनायक की भूमिका मिल गयी है? नई फोटो से ऐसा ही लगा. अगर मिल गयी है शुभकामना-बधाई और अगर ऐसा नहीं है तो फिर... काहे को डराते हो भाई ..... ??

    कल शाम मेरे एक गैर साहित्यिक मित्र मेरे ब्लॉग की छानबीन कर रहे थे. कमेन्ट बॉक्स में आपका चित्र देखते ही बोले, "अबे, तू अब बहुत बहुत आगे निकल गया. इसे जानता है? मैं जानता हूँ, ये साउथ इंडियन फिल्मों में विलेन के रोल करता है. आज मालूम पड़ा, इसका नाम सतीश सक्सेना है"



    हा  हा  हा  ......आपके  प्यार का बहुत बहुत आभारी हूँ सर्वत भाई ....बदल देता हूँ यार  अपने  पसंद का फोटो ...और फिर वही  पुराने बुड्ढे  का फोटो लगा रहा हूँ ....मैं सोच रहा था बड़ी तारीफ़ होगी हमारी ५५ साला जवानी की ...मगर आपने बीच में कूद कर सारी हसीन आशाओं पर पानी  उड़ेल दिया दिया  ! 
    दोस्त हो तो आप जैसा ...

    दुबारा वही पुराना फोटू लगा रहा हूँ  !


    जलते हो  !!!