बहुत खतरनाक गैंग है , आप इनकी शक्लों पर न जाइये घर बुलाते हैं ..बड़े प्यार से खाना खिलाते हैं ..और जब आपका मन प्रसन्न हो जाता है तब रसगुल्लों की प्लेट आपके हाथ देकर अपना लैपटॉप खोल कर बैठते हैं और इससे पहले कि आप कुछ समझ सकें, चौकन्ने हो सकें, निकलने की सोचें ,अपनी नयी रचना सुनना शुरू कर देते हैं , और रचना भी इतनी लम्बी कि रसगुल्ले और लंच हज़म हो जाएँ मगर ख़त्म होने का नाम नहीं लेती और श्रीमान जी बंद होने का नाम नहीं लेते ! उसके बाद उन कवियों का नंबर आता है जिन्हें श्रोता ढूंढे नहीं मिलते मुझे पूरा शक है कि उन कवियों से श्रोता इकट्ठे करने के लिए एक मोटी रकम ली जाती है जो श्रोताओं को दिए बिना साफ़ कर दी जाती है ! उस दिन हम और खुशदीप सहगल इनके चक्कर में फँस गए और नहीं निकल पाए डॉ दराल और अजय झा चतुर खिलाड़ी हैं जो बढ़िया बहाने बना कर पहुंचे ही नहीं ! यकीन माने कविता सुनकर जितनी तालियाँ हम बजा रहे थे वे सब तब बजाते थे जब भाभी जी संजू तनेजा गरमा गरम पकौड़ों की प्लेट, मिठाइयाँ और चाय लातीं थीं ! अलबेला खत्री भी बहुत सब्र किये बैठे सुनते रहे !
लार्ज हेड्रन कोलाईडर के प्रयोग का आज दिन है , और हमें डरा रहें हैं कि दुनिया खत्म हो जायेगी तो इन्हें हमने यह शिकायत लिख भेजी !
हमेशा के लिए विदाई लेते हैं दोस्त ,
पता नहीं कल रहे या न रहें
ऊपर भी आपसे एक शिकायत रहेगी ,
उस दिन राजीव तनेजा के घर पर
अपनी तो ३ पेज की रचना सुना दी
और हमारी बारी आयी तो बात ही घुमा दी
मेरा प्रस्ताव है कि सभी ब्लागर जब भी कहीं जाएँ तो पहले पूंछ लें कि कहीं कविता तो नहीं सुननी पड़ेगी और अगर सुननी पड़ी तो मेजवान को विदाई के समय हर ब्लागर को कम से कम ५०० रूपया पारिश्रमिक देना होगा !
मगर यह लोग भी कम चालाक नहीं हैं भाभी जी से बिना पारिश्रमिक खाना और हमें बिना पारिश्रमिक श्रोता बनने
पर मजबूर करते हैं !
सलाह दें कि क्या किया जाये ??
nice
ReplyDeleteमुफ्त के भोज का हर्जाना तो देना पड़ेगा :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण.
ReplyDeleteओह!...ये तो बहुत बड़ी गलती हो गई...मैं इसके लिए बहुत ही शर्मिंदा हूँ ...
ReplyDeleteआपने सही कहा कि जाते वक्त कम से कम पांच सौ तो थमाने चाहिए थे......
दरअसल क्या है कि अभी फिलहाल मैं नया खिलाड़ी हूँ और अभी तक मैंने कुल डेढ़ सौ के आस-पास कहानियाँ/कविताएँ लिखी होंगी हैं...जैसे ही वो आंकडा पांच सौ की गिनती को पार कर लेगा ...उन सभी का प्रिंट आउट ले के आप के पास हाज़िर हो जाऊंगा...
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि जो कहानी मैंने आपको सुनाई थी...वो मेरी सबसे छोटी कहानियों में से एक थी.... बस आप अपना हाजमा दुरस्त रखें...कहानियाँ...पांच सौ हों या पांच हज़ार....क्या फर्क पड़ता है? :-)
अब रसगुल्ले आप अकेले २ खाओगे तो कविताएं भी आप ही झेलोगे..ताऊ तो झेलने से रहा.
ReplyDeleteरामराम.
Big Brother
ReplyDeleteje koi baat bhai ki akele akele khaao or jhelo ... taauji kyon jhel payenge jee ha ha .
लो जी कल्लो बात
ReplyDeleteआज अप्रैल माह में याद आ रहा है
मार्च का किस्सा
पूरा महीना बीत गया
और वो भूल गए क्या आप
आप ही कह रहे थे
मैं नहीं कुछ भी सुनाऊंगा
मुझे डर लगता है
सक्सेना हूं न
सक्सेस ना हूं
आईने के सामने ही गाता हूं
आईना जो बाथरूम में लगा है
खूब मुस्कराता हूं
सामने सबके घबराता हूं
ब्लॉग पर लिखता हूं
खुशदीप जी के साथ बैठकर
खूब योजनाएं बनाता हूं
और आपने यह भी कहा था
कि अब हमें आने में देर हो गई है
इसलिए आप ही सुनाइये
जीभर के गाइये या पढ़ के सुनाईये
पर हमसे एक शब्द न बुलवाइये
अगर हम ही बोलते रहेंगे
तो रसगुल्ले हाथ में पकड़े
पकड़े हमारे हाथों में ही चिपक जायेंगे
जिन्हें खाने को हमारे मुखारविन्द तरस जायेंगे
जितनी देर में हम सुनायेंगे
उतनी देर में आप सारे खा जाएंगे
फिर हम रसगुल्लों से भी जाएंगे
और खूब हंस रहे थे
हमें नहीं पता था
मन में आपके अप्रैल फूल
बनाने के इंतजामात मचल रहे थे
जो आज बाहर आए हैं
पर हमें तो खूब भाए हैं
आज से अपने गैंग का मुखिया
बनाते हैं आपको, हो जाएं सुखिया।
सारी पोल खुलवा ली है
आप कहें तो हम चुप हो जाएं
पर हमें नमकीन रसगुल्ले तो भिजवाएं
और आप पहचान नहीं पाए थे
डॉ. दराल और अजय झा भी आए थे
उन्होंने भी सबके साथ फोटो खिंचवाए थे
राजीव जी वे फोटो आपको जल्द ही
किसी ब्लॉग पर दिखलाएंगे।
बस अप्रैल के फूल को
फलने तो दीजिए
फूल खिल रहा है
खिलने के बाद ही
बनता है फल
आपका प्रयास
नहीं जाएगा निष्फल।
पर सब कुछ बतलायेंगे
पर यह न बतलायेंगे
कि रसगुल्लों की प्लेट
हम दोनों ने ही पकड़ी थी
और आप दोनों
अपने चारों हाथों से
बिना चबाए निगल रहे थे
आपके गले से रसगुल्ले
साबुत ही सरक रहे थे
पर हमें किसी ने बतलाया है
जब तक रसगुल्ले को
चबाया नहीं जाएगा
उनमें न रस का
न गुल्ले का
तनिक भी स्वाद आएगा।
राजीव को बता दो कि हम डायबीटिक है
ReplyDeleteरस्गुल्लो के झान्से मे नही आने बाले
वो एक सुनायेन्गे हम ५ अप्नी और ५ दूसरो की सुनायेगे.
हा हा!! रसगुल्ला खाते समय नहीं समझ आया क्या कि इसके बाद क्या होने को है. :)
ReplyDeleteकभी इस तरफ आयें तो खीर भी खिलवाई जाये..फिर सोचिये...:)
बिल्कुल सच बात कह रहे है सतीश जी बस इतना है कि कोई सब्र से सुन ले तो रचना का पूरा मज़ा ले सकता है..मजेदार तो होती ही है..बस थोड़ा बड़ा होता है और रही बात कविता वाली तो उस श्रेणी में तो हम भी आते है...बढ़िया विवरण गैंग का...धन्यवाद
ReplyDeleteकुछ मेहमान तो ऐसे ,कि बुलाने पर भी नहीं आते हैं
ReplyDeleteऔर कुछ बिन बुलाये , टेंट फाड़ कर भी घुस जाते हैं ।
फिर दस बीस उड़ाते हैं , गुलाब जामुन
और बाकी से भर ले जाते हैं दामन ।
लो हमने भी बिन मांगे सुना दी एक कविता । :)
ये बहुत गल्त बात है राजीव भाई भले सुमन जी नाईस कहें
ReplyDelete@ अविनाश वाचस्पति,
ReplyDelete@ डॉ दराल
हा..... हा...... ...हा........... हा ,
वाकई अविनाश भाई आज अपने और डॉ दराल ने हंसा हंसा कर बुरा हाल कर दिया , आपकी यह इष्टायल बहुत ज़ोरदार रही ! पूरे १०० में सौ नंबर मार लिए ! और यह डॉ साहब पूरे आशुकवि हैं यह आज ही जाना !
आप दोनों का आभार ! लेखन सफल रहा ....
सतीश भाई,
ReplyDeleteआप और मैं तो सस्ते में छूट गए...राजीव भाई पहले बकरा लाते हैं...उसे खूब खिला खिला कर मोटा ताज़ा करते है...कुरबानी के वक्त राजीव जी और कुछ नहीं करते, बस अपनी चांद की दूरी जितने किलोमीटर लंबी रचना सुनानी शुरू करते हैं...थोड़ी देर बाद बकरा खुद ही अपनी मुंडी तश्तरी में राजीव भाई को पेश कर देता है...
जय हिंद...
ले ली जी सतीश भाई
ReplyDeleteइस पोस्ट की सारी लाइट ले ली
अब घर की बत्ती भी इसी से जलायेंगे
और बिजली का बिल आज से ही बचायेंगे
पर आप अगली बार अवश्य तालियां बजायेंगे
तो कुछ रसगुल्ले हम भी खाना चाहेंगे
सतीश जी अगर कोई कवि हवाई जहाज मै आप की बगल मै बेठ गया तो??? इस लिये अविनाश जी ओर राजीव तनेजा जी आप की मदद कर रहे है ओर रस गुल्लो मै भीगो भीगो कर अपनी रचनाये सुना रह्रे है, ताकि आप को अभी से आदत पढ जाये
ReplyDeleteअरे यार अविनाश ,
ReplyDeleteजब बिना किसी रसगुल्ले के रोज रोज ठेली पोस्टें आपकी हम पचा जाते हैं तो खा पी कर शरीफ आदमी की इज्जत का जनाजा न निकालो .
हाहाहाहाहाहा....
ReplyDeleteबहुत खूब सरजी....
भाभी जी के हाथ पकौड़े खाने के बाद भई तसल्ली नहीं मिली...तो
ये तो बेनियाजी है सरासर,,,
हाहाहाहाहा
आलोक साहिल
सतीश जी , चार लाइना में ही १०० में से १०० दे दिए।
ReplyDeleteज़रा सोचिये जब इसी कविता की ४० लाइना सुनाऊंगा , तो क्या १०० में से १००० देंगे !
हा हा हा ! आप खुश तो हम भी खुश ।
सतीश साहब ,
ReplyDeleteआपकी पिछली पोस्ट ने तो पानीपत की तीसरी लड़ाई का आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया और इस पोस्ट में कुल मिला के जितनी बार रसगुल्लों का नाम आया है ,मैं इस सोच में हूँ कि उतने बने थे कि नहीं क्योंकि आजकल नोटों की माला और रसगुल्लों के प्याले का हिसाब भी आयकर रिटर्न में भरना पड़ता है ,ये राजीव जी को फंसाने की आप लोगो की मिली जुली साजिश तो नहीं है
वैसे अच्छा है कि समीर लाल जी खीर खिलाएंगे और उस आयोजन में तो हम जरूर टेंट फाड़ कर घुस जायेंगे