Tuesday, February 23, 2010
हम और तुम !
लगभग २० वर्ष पहले लिखी एक रचना ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ , पत्नी को मनाने की असफल कोशिश करता एक बेचारे पति का यह चित्रण बहुत स्थानों पर आज भी वास्तविकता है ....
तुम मेरे दिल की रानी हो
मैं तेरे दिल का कचरा हूँ ,
पति ढूँढा है,लक्ष्मीवाहन
तुम हो देवी सौभाग्यवती
तुम हो खिचडी में घी जैसी , मैं चटनी जैसा दीखता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये ! कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
तुम हो बिलकुल जीनत अमान
मैं प्राण सरीखा , दिखता हूँ
तुमतो हेमा की कापी हो ,
मैं प्रेम चोपड़ा , लगता हूँ !
दोनों पहिये बेमेल मिले , जीवन गाडी है खडी प्रिये !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
मैं एक गाँव का हूँ , गंवार ,
तुप छैल छबीली दिल्ली की
मैं राम राम और पाँव छुऊँ
तुम हाय हाय ओंर हेल्लो की ,
जीवन गाडी के दो पहिये , दोनों कैसे बेमेल मिले !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !
तुम हो गन्ने की रस जैसी
मैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ
तेरा चेहरा गुलाब जैसा
मैं नोडू जैसा दीखता हूँ
तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
तुम मेरे दिल की रानी हो
मैं तेरे दिल का कचरा हूँ ,
पति ढूँढा है,लक्ष्मीवाहन
तुम हो देवी सौभाग्यवती
तुम हो खिचडी में घी जैसी , मैं चटनी जैसा दीखता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये ! कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
तुम हो बिलकुल जीनत अमान
मैं प्राण सरीखा , दिखता हूँ
तुमतो हेमा की कापी हो ,
मैं प्रेम चोपड़ा , लगता हूँ !
दोनों पहिये बेमेल मिले , जीवन गाडी है खडी प्रिये !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
मैं एक गाँव का हूँ , गंवार ,
तुप छैल छबीली दिल्ली की
मैं राम राम और पाँव छुऊँ
तुम हाय हाय ओंर हेल्लो की ,
जीवन गाडी के दो पहिये , दोनों कैसे बेमेल मिले !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !
तुम हो गन्ने की रस जैसी
मैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ
तेरा चेहरा गुलाब जैसा
मैं नोडू जैसा दीखता हूँ
तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
7 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
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रानी का दिल कचरादान
ReplyDeleteअब तो शामत आई
भाई सतीश अब तो
लो मान।
तुम हो बिलकुल जीनत अमान
ReplyDeleteमैं प्राण सरीखा , दिखता हूँ
तुमतो हेमा की कापी हो ,
मैं प्रेम चोपड़ा , लगता हूँ !
दोनों पहिये बेमेल मिले , जीवन गाडी है खडी प्रिये !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
अरे फ़िर तो कभी नही मानेगी बीबी, तभी तो बीस साल लग गये मनाने मै, ओर अभी तक नही मानी, एक बार साली की ्तरीफ़ करो, किसी सुंदर सी पडोसन की तरीफ़ करो... ग्फ़िर देखो
मजेदार
ReplyDeleteमजा आ गया
बेमेल का मेल हुआ यही कम है क्या
और यह पढ़ते समय षाष्टांग दंडवत का पोज़ रहा होगा...मन ही मन आपको चित्रित कर प्रमुदित हुए जा रहे हैं. हा हा!!
ReplyDeleteतुम हो गन्ने की रस जैसी
ReplyDeleteमैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ
तेरा चेहरा गुलाब जैसा
मैं नोडू जैसा दीखता हूँ
तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ !
मैं हूँ कैसा नादान प्रिये , कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये !!
सतीश जी, आपने इस गीत की आड लेकर भाभीजी पर आपके अत्याचारों की बात स्वीकार ली है. आपने उनको गन्ने जैसा कोल्हू मे निचोडे जाने को खुद स्वीकारा है, अब कभी भी आपके घर पर महिला मोर्चा लगा ही समझिये.:)
रामराम.
तुम हो बिलकुल जीनत अमान
ReplyDeleteमैं प्राण सरीखा , दिखता हूँ
तुमतो हेमा की कापी हो ,
मैं प्रेम चोपड़ा , लगता हूँ ..
वाह वाह .. सतीश जी .. क्या गीत है ... काका हाथरसी की याद हो आई ... बहुत ही लच्छेदार ... हास्य से भरपूर ...
कहीं भाभी जी की शान में तो नही लिखा ....
अरे! वाह.... बहुत ही मजेदार.... मज़ा आ गया....
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