Saturday, October 11, 2008
ये रिश्ते खून के .....
अपने भाई समान मित्र की पत्नी का आपरेशन होना है, उन्हें खून देने की व्यवस्था करने का निर्देश मिला जान, परिजनों ने खिसकना शुरू कर दिया, मेरे दोस्त को पहले से ही अपना एनेमिक होना याद आ गया और उनके हट्टे कट्टे भाई को उनकी ६५ वर्षीया माँ ने रोक लिया कि उसे कमजोरी हो गयी तो अपने काम पर नही जा पायेगा, हमारे घर में एक ही लड़का है, उसी पर सारे घर का दारोमदार है, खून देने को मैं दे देती ... पर डॉ का कहना है कि मेरी उम्र ज्यादा है ...... मैं अचंभित सा यह सब देख रहा था कि सगी बहिन जिसने बचपन से इसकी रक्षा के लिए राखी बाँध कर भगवान् से दुआ मनाई होगी कि मेरे भाई को सुरक्षित रखना और आज बहिन की आवश्यकता पर यह सगा भाई , पति और यहाँ तक कि सगी माँ को भी बेटे की चिंता अधिक थी न की अपनी बेटी की ....
ब्लड देते समय मैं सोच रहा था इन रिश्तों के बारे में ..........
26 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
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ReplyDeleteयार सक्सेना जी, इनके मानवतावादी चरित्र को भी देखा कर.. यदि यह जिम्मा लोग ले लें तो ख़ून बेचकर पेट पालने वाले अपनी लत को पोसने वाले, क्या करेंगे ?
वैसे इस मनोवृत्ति से मुझे तो बड़ा लाभ है, जब भी किसी मरीज़ के तीमारदार बवाल करने को आमदा होते हैं.. मैं उस बलवाई टीम के सक्रिय लोगों को बुला लेता हूँ.. उनसे बिना कोई बहस किये अपने सहयोगी को निर्देश देता हूँ, कि इन साहबान का ब्लडग्रुप मैच करवाओ, इनके मरीज़ को फ़ौरन एक यूनिट ब्लड चाहिये... बलवाईयों से कहता हूँ,
आपलोग अभी तो इतना कर ही दीजिये.. फिर नेतागिरी करने को तो आगे ज़िन्दगी पड़ी है..
आगे क्या होता होगा, यह ख़ुद सोच लो..
' aaj aapne hume bhee 6 sal pehle ka ek incident yaad dila diya, it was time of my very close relative's (family member) operation and the same scene was created there also inspite of 3 daughters and two sons no one came ahead and i gave her blood. any way it was pleasure for me, and was my family matter, but yet also deep in my heart a question always disturbs me that why blood realations dont come ahead at that moment of time...'
ReplyDeleteRegards
सक्सेना साहब आपको और आपकी संवेदना को प्रणाम करता हूँ. रिश्ते तो वे होते हैं जो निभाये जाते हैं. और आपने अपना खून देकर यह साबित कर दिया.
ReplyDeleteबहुत कडुवा सच लिख दिया सतीश जी। हम लोग भी ऐसी स्थिती से कई बार गुजरे हैं।सगे रिश्तेदार भागते नज़र आते हैं।पिछ्ली नवरात्रि मे हमारे मित्र का छोटा भाई कार दुर्घटना मे घायल हो गया।खबर मिलते ही सारे दोस्त जिनमे कुछ डाक्टर भी हैं,वहां पहुंचे।उसकी हालत बहुत खराब थी। डाक्टरों ने बताया खून बहूत लगेगा,लीवर डेमेज है।ओ नेगेटिव सुनते ही सबकी हालात खराब हो गई।खून की व्यवस्था करने के लिये मैं बाहर निकला तब-तक गुजराती नवयुवक मण्डल के सदस्य गरबा छोड अस्पताल आ गये थे।उन्होने मुझसे पुछा तो मैने अपनी चिंता जाहिर कर दी।वहां खडे लड्को ने कहा आप चिंता मत करिये जितनी बोतल खून लगेगा मिल जायेगा,हमारे समाज मे हर किसी का ब्लड ग्रूपिंग हो चुका है।दर्जनो बोतल खून देने के बावजूद वो बचा नही,मगर उस समाज के लोगो के समर्पण की भावना ने मुझे नत-मस्तक कर दिया। अब जब भी कोइ जरुरतमंद खून की लिये पूछता है तो हम दोस्तों का ग्रूप बेहिचक हां कह देता है उन गुज्जू भाईओं के भरोसे और आज तक भरोसा टूटा नही है।बहुत ही पुण्य का काम किया आपने रक्त दान कर और उसे यहां बयां कर हम जैसे लोगों का हौसला भी बढा दिया। आभार आपका।
ReplyDeleteसंवेदन हीन हो गए हैं आज के वक्त में रिश्ते ....आपने नेक कार्य किया ..
ReplyDeleteसतीश जी आपने बड़ा ही मार्मिक सवाल खडा कर दिया ! इसकी जड़ में मुझे तो अज्ञानता ही लगती है ! पर ऐसा अज्ञान- भी किस काम का ? बहिन के लिए भाई और भाई के लिए बहिन तो जान तक दे देते हैं , फ़िर ये खून की क्या औकात ? भाई हमारे आस पास तो ऐसे काम के लिए पडौसी भी हाजिर रहते हैं और अन-नॉन भी ! पर दुनिया में सब तरह के लोग हैं ! और उनका इलाज हमारे गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ने बता दिया है ! बहुत धन्यवाद, ऎसी जरुरी सामाजिक जरुरत के लिए लोगो को जागृत करने के लिए !
ReplyDeleteरिश्तों के बीच बढ़ती दूरियों के लिए आख़िर ज़िम्मेदार कौन है...? हमारा ही समाज न...आपको जैसे संस्कार मिलेंगे आप वैसे ही तो बनेंगे...
ReplyDeleteSatishji, aapko na to isse ashcharya hona chahiye aur na hi afsos kyonki aaj ke samay men rishton ki kitni ahmiyat rah gayee hai, aap bhali prakar se jante hain.jo samjhte hain rishton ko, ve to khoon ka nahin ho tab bhi nibha lete hain, jaisa ki aapne kiya. rishte bhavnaon ke hote hain, khoon ke to kagajon par hote hain. jab pati ko hi ahsas na ho to dusaron se apeksha karna kahan uchit hai.aapke man men uthe toofan ko samjha ja sakta hai. aapne insaniyat ke rishte ko nibhaya, dhanywad.
ReplyDeleteऐसा ही होगा है आज जब जरूरत होती है तब सभी खिसकते ही है। आपने बहुत सुन्दर कार्य किया है
ReplyDeleteभगवन न करे की ऐसा सच में हो, अगर यह सच में हुआ है तो इससे अधिक दुर्भाग्य नही हो सकता. आपकी प्रस्तुति वाकई में सोचने पर मजबूर करती है. क्या सच में रिश्ते इतने बदल गए हैं?
ReplyDelete"मेरे दोस्त को पहले से ही अपना एनेमिक होना याद आ गया और उनके हट्टे कट्टे भाई को उनकी ६५ वर्षीया माँ ने रोक लिया कि उसे कमजोरी हो गयी तो अपने काम पर नही जा पायेगा, हमारे घर में एक ही लड़का है, उसी पर सारे घर का दारोमदार है, खून देने को मैं दे देती"
ReplyDeleteसतीश जी
सब जगह एसा ही होता है क्युकी हम सब जब तक अपने पर नहीं आती तब तक शायद नहीं दर्द महसूसते .
और अगर इस जगह भगवान् ना करे आपके मित्र होते तो उनकी पत्नी रक्त दान करती और पत्नी की माता अपने बेटे का रक्तदान करवाती क्युकी तब डर होता की अगर बेटी विधवा होगई तो घर ना वापस लाना पडे .
यही सच हैं हमारे समाज का जहाँ हर चीज़ मे नारी और पुरूष की समानता के प्रति हमारा नज़रिया बहुत ही तंगदिल हैं . लड़की के अभिभावकों के लिये भी पुत्री से ज्यादा दामाद का महत्व होता हैं .
आप की भावनाए हमेशा ऐसी ही रहे
आपने सामयिक प्रश्न उठाया है. आज रिश्ते केवल ओपचारिकता निभाने के लिये ही रह गये हैं. वास्तविक रूप में सहयोग की बात आने पर अधिकांश लोग बगलें झांकने लगते हैं.
ReplyDeleteआप बुध्दिवादियों में हृदय खोजने की गलती कर रहे हैं.
सक्सेना जी /बिल्कुल सही है =ये जमाने को क्या होता जारहा है =खून के रिश्ते क्यों पानी में तब्दील होते जारहे है इसके लिए कौन जिम्मेदार है कभी सोचो तो सही
ReplyDeleteआपने आज रिश्तों को झकझोरता हुवा सवाल उठाया है ! और शायद आप सच कह रहे हैं ! ऎसी स्थितियां भी सामान्य रूप से देखने में आती हैं ! इस पोस्ट से कुछ सीखना चाहिए ! धन्यवाद !
ReplyDeleteरिश्ते नाते प्यार..... भाई हमारे गुरु बन्धु डा. अमर कुमार जी का तरीका बिलकुल कामजाब है,यही तरीका मेने भी कई बार आजमाया है, अपने लोगो मै एक आचुक दवा.
ReplyDeleteधन्यवाद
लोगों की समझ और मानसिकता का फर्क है। वरना रक्तदान तो लाभ का सौदा है।
ReplyDeleteअब रिश्तों में दिखाबा ज्यादा है, आपसी प्रेम कम. लालच इंसानियत पर इस कदर हावी हो गया है कि हर आदमी कुछ भी करने से पहले यह देखता है कि इस में उस का क्या फायदा है?
ReplyDeleteऐसी समस्या से मैं भी कई बार दो-चार हो चुका हूं.. कालेज में था तब वेल्लोर का मशहूर अस्पताल वाले शहर में ही था और कई बार खून देने का मौका आया.. हर बार 1-2 खून के रिश्ते की बात कह कर समय आने पर बहाना बना कर भाग जाने वाले लोग बहुत देखे हैं.. कई बार गुस्सा भी आता था कि एक हम ही मूर्ख मिले हैं जो बिना किसी जान-पहचान के खून देने चले आये? मगर फिर मरीज कि हालत देख कर मन बदल जाता था..
ReplyDeleteसच ही बहुत ही दखद स्थिति है यह पर मैने ऐसे भी लोग देखे हैं जो पडेसियों को भी अपना खून स्वेच्छा से देते हैं जैसे आपने दिया । ऐसे सब लोगों से ही अच्छाई जीवित है ।
ReplyDeletejindagi issi ka naam hai, satish bhai..........!! har vyakti bahut jayda bhautikwadi ho gaya hai.......
ReplyDeleteदीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteपरिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
इस दौर में आपने इस वाकये को लाइट नहीं लिया!
ReplyDeletewah
ReplyDeleteरिश्तो को भी तो लाईट ही लो भाई-साहब....वो कह गए हैं ना कि क़समें-वादे प्यार-वफ़ा सब नाते हैं,नातों का क्या...रिश्तों की सच्चाई अक्सर इतनी कड़वी निकलती है कि आप उसे बयान भी नहीं कर सकते...और चाहे जितना कड़वा हो...सच तो यही है.....!!
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