कुछ मस्ती वाली बात नही
कुछ खर्च करो, कुछ ऐश करो
कुछ डांस करें, कुछ हो जाए !
जब मौज नहीं कोई धूम नहीं , तब बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या कहते हो ? क्या करते हो
है ध्यान कहाँ ? कुछ पता नहीं
ना टाफी है, ना चाकलेट ,
ना रसगुल्ला, ना बर्गर है
हम मस्त कलंदर धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
मस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना गुलछर्रे, ना हो हल्ला,
हम धूमधाम,तुम सन्नाटा
हम छक्के हैं तेंदुलकर के ,
तुम वही पुराना नजराना
हम रंग जमा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
हम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
sahi hai bhai. jari rhe.
ReplyDeletebhut sahi. sundar. likhte rhe.
ReplyDeletebhut badhiya. ati uttam.
ReplyDeleteहम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
क्या बात है ?
आज तो आनंद आ गया साहब !
बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
क्या बात हे अति सुन्दर कविता, लगता हे बाप बेटा अपिस मे बात कर रहे हे, धन्यवाद
ReplyDeleteoo la laa! kya kavita hai!
ReplyDeleteहम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं तुम घासलेट
हम रंग रुपहले तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
वाह मज़ा आ गया.
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं तुम घासलेट
हम रंग रुपहले तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
-भीषण!! बहुत उम्दा.. :)
.
ReplyDeleteअरे , तू तो अपनी सोच का निकला यार !
एकदम ज़ायज़ बात " हम बात तुम्हारी क्यों मानें ? "
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं तुम घासलेट
हम रंग रुपहले तुम कालिख
धन्यवाद सतीश जी मजा आ गया दावत का.
ati utaam....maja aa gaya..
ReplyDeletebahut maja aaya. Keep it up.
ReplyDeleteRanu
आप को आज़ादी की शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबाल-मन की जीवन्तता का उतना ही जीवन्त चित्रण।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
बहुत सुंदर, जिंदगी बहुत सुंदर है, उसे जीना है लाईट लेकर.
ReplyDeleteहम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं तुम घासलेट
हम रंग रुपहले तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
सतीश जी आपने बचपन याद दिला दिया ...बहुत ही अच्छी रचना है !!!!!!!!!
क्या बात है। बचपन की बेफिक्री याद दिला दी। शुक्रिया।
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रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
ReplyDeleteमस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
bachpan ki yaad dila di aapne. purani yaado k bich le jane k liye shukriya
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahot khub...
ReplyDeleteइस काव्य की रचना ऐसे सरल शब्दों में की गई है कि यकीन नहीं होता. लिखते रहें!!
ReplyDelete-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
अच्छी भिड़न्त है लड्डू, साग, चॊकोलेट और भिंडी?
ReplyDeleteक्या कॊम्बीनेशन है!
सुंदर और मजेदार आनंदित हो गया ह्रदय .. मेरे चिठ्ठे पर पधारने के लिए धन्यवाद पुन: आमंत्रण है सरकारी दोहे पढ़ने के लिए कृपया पधारें
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