Saturday, October 11, 2008

ये रिश्ते खून के .....


अपने भाई समान मित्र की पत्नी का आपरेशन होना है, उन्हें खून देने की व्यवस्था करने का निर्देश मिला जान, परिजनों ने खिसकना शुरू कर दिया, मेरे दोस्त को पहले से ही अपना एनेमिक होना याद आ गया और उनके हट्टे कट्टे भाई को उनकी ६५ वर्षीया माँ ने रोक लिया कि उसे कमजोरी हो गयी तो अपने काम पर नही जा पायेगा, हमारे घर में एक ही लड़का है, उसी पर सारे घर का दारोमदार है, खून देने को मैं दे देती ... पर डॉ का कहना है कि मेरी उम्र ज्यादा है ...... मैं अचंभित सा यह सब देख रहा था कि सगी बहिन जिसने बचपन से इसकी रक्षा के लिए राखी बाँध कर भगवान् से दुआ मनाई होगी कि मेरे भाई को सुरक्षित रखना और आज बहिन की आवश्यकता पर यह सगा भाई , पति और यहाँ तक कि सगी माँ को भी बेटे की चिंता अधिक थी न की अपनी बेटी की ....

ब्लड देते समय मैं सोच रहा था इन रिश्तों के बारे में ..........

Wednesday, October 1, 2008

हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

जब से व्याही हूँ साथ तेरे
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें
बुड्ढे बुढ़िया के पैर छुएं,
फूटी किस्मत, अरमान लुटे, अब बात तुम्हारी क्यों माने ?


ना नौकर हैं, न चाकर हैं
न ड्राईवर है, न वाचमैन,
घर बैठे कन्या दान मिला
ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें


ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?


पत्नी सावित्री सी चहिये ?
पतिपरमेश्वर का ध्यान रखे
गंगा स्नान के मौके पर
जी करता धक्का देने को !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?


हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम प्रेतविनाशक तुम कायर
हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
जब तुम दफ्तर भग जाते हो
हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?