ब्लाग जगत में हास्य की याद आते ही भाई बृजमोहन श्रीवास्तव की एक रचना याद आजाती है जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी ...( या भगवान जाने किसके लिए ....?) के लिए लिखा था !
"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
उस पार तो कुछ अच्छा होगा "
बेचारे पति की यह बेबसी और फिर भी हिम्मत न हारने का इससे अच्छा उदाहरण अन्यंत्र दुर्लभ है ! दो शब्दों में लगता है सारे पतियों की और से सब कुछ बयां कर डाला ! ;-)
Monday, June 22, 2009
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