बरसों बीते साथ तुम्हारे ,
सासू लेकर, चारधाम की
यात्रा तुमको, याद न आई !
कितने लोग तर गए जाकर
क्यों भोले की, याद न आई !
काश उत्तराखंड की साजन,तुमको टिकट मिल गयी होती !
नमःशिवाय, उच्चारण करते, मैं भी धन्य, हो गयी होती !
नाइन इलेवन के दिन भी तो
होटल से बाहर, निकले थे !
उस दिन तुम न्यूयार्क में थे ,
पर डब्लू टी सी, नहीं चढ़े थे ?
काश तुम्हारी थुलथुल काया, काम कहीं तो,आई होती !
आज तलक मैं ,रोज़ फूल की माला,तुम्हे चढ़ाती होती !
जिसदिन सूनामी आई थी
तब तुम बाहर नहीं गए थे
कितने लोग मरे थे बाहर
तुम खर्राटों में, सोये थे !
काश सुनामी में ,यह बॉडी, लहर में गोते, लेती होती !
शोक संदेशा,आस लगाए,मैं भी खूब,बिलखती होती !
कितने साल , बिताए हमने
खर्राटों और पुर्र -पुर्र में !
प्रियतम बचे,विसर्जित होते
मोटरबोट की , घुर्र -घुर्र में !
फिसल के डूबे होते, उसदिन ,अगर नदी इठलाती होती !
कसम तुम्हारी मैं जीवन भर, गंगा के, गुन गाती होती !
कबतक करवा चौथ रखूंगी
सजधज कर, गौरी पूजूँगी ,
सास के पैर, पति की पूजा
कब तक मैं,इनको झेलूंगी
कब से जलती, आग ह्रदय में ,कभी तो छाती ठंडी होती !
सनम जल गए होते,उस दिन ,काश दिए में, बत्ती होती !
अब तो जाओ,जान छोड़कर
कब तक भार उठाये, धरती
फंड, पेंशन, एफडी, लॉकर ,
बाद में लेकर मैं क्या करती
अगर मर गए, होते अब तक,साजन रोज आरती होती !
कसम नाथ की,मैं जीवन भर,तुम्हे याद कर रोती होती !
( कृपया इसमें गंभीरता न खोजें न अन्यथा अर्थ लगायें , यह व्यंग्य नहीं है विशुद्ध हास्य है इसे उसी स्वरुप में पढ़ें ! जिन्हें हंसना नहीं आता, वे क्षमा करें )
utam-) :)
ReplyDeleteutam-) :)
ReplyDeleteव्यंग चोट करता है।
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